Badrinath Rawal (डॉ बृजेश सती की रिपोर्ट) उत्तराखंड देवभूमि है, यहां के कण कण में देवताओं का वास माना जाता है, वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड में ऐसी कई तीर्थ हैं जिनकी खासी मान्यता है, मगर इन सबके बीच देवभूमि के चार धाम इस पहाड़ी प्रदेश की पहचान है। चारधाम में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम का नाम आता है। यमुनोत्री धाम में मां यमुना की पूजा होती है, गंगोत्री धाम में मां गंगा को पूजा जाता है, केदारनाथ धाम में भगवान शंकर और बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की आराधना होती है। आज हम आपको बद्रीनाथ धाम की की एक विशेष मान्यता के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
बदरीनाथ मंदिर (Badrinath Mandir) की अलग ही तरह के पूजा-पद्धति है। बदरीनाथ मन्दिर के मुख्य अर्चक को रावल कहा जाता है। मन्दिर के गर्भ गृह में प्रवेश और भगवान बदरीनाथ जी की मूर्ति को स्पर्श का अधिकार रावल यानी मुख्य पुजारी को ही है। मन्दिर के मुख्य पुजारी को रावल की उपाधि तत्कालीन टिहरी नरेश द्वारा दी गई थी।
बदरीनाथ धाम में 1776 में हुई थी रावत परंपरा की शुरुआत
बदरीनाथ मन्दिर में रावल परंपरा (Badrinath Rawal) की शुरुआत सन 1776 में हुई थी। तत्कालीन टिहरी नरेश प्रदीप शाह, जब बदरी पुरी के प्रवास पर थे तो उन्हें पता चला कि बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी, जो ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य हुआ करते थे, ब्रह्मलीन हो गए हैं। मंदिर की पूजा को नियमित करने के लिए उन्होंने गोपाल नंबूदरी को मंदिर का रावल नियुक्त किया। यहीं से बदरीनाथ मंदिर में रावल परंपरा की शुरुआत हुई।
मंदिर के रावल नैष्ठिक ब्रह्मचारी होते हैं। केरल राज्य के कालडी गांव के नंबूदरी ब्राह्मण ही रावल पद को सुशोभित होते हैं। पूर्व में रावल पद पर नियुक्ति का अधिकार टिहरी नरेश के पास था, लेकिन अब बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के पास ये अधिकार है। नायब रावल ही रावल पद पर नियुक्त होते हैं। हालांकि पूर्व में जब टिहरी नरेश द्वारा रावल का तिलपात्र किया जाता था तब दस्तूर के तौर पर राज परिवार की ओर से नव नियुक्त मुख्य पुजारी को सोने के कड़े और खिलत ( विशेष प्रकार का अंगवस्त्र) उपहार स्वरूप दिया जाता था।
बदरीनाथ मंदिर के इतिहास में अब तक 20 रावल हुए हैं। वर्तमान में ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। उन्होंने वर्ष 2014 में बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी का पदभार ग्रहण किया था। वे पिछले 10 वर्षों से निरंतर अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे। लेकिन पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते अब वे भगवान बदरी विशाल की सेवा नहीं कर पाएंगे।
मौजूदा नायाब रावल अमरनाथ नंबूदरी बदरीनाथ मंदिर के नए मुख्य पुजारी होंगे। जिनका आगामी 13 जुलाई को रावल पद पर तिलपात्र किया जाएगा।
भगवतपाल आदि गुरु शंकराचार्य 11 वर्ष की अवस्था में बदरीनाथ धाम पहुंचे थे। यहां उन्होंने अपने तपोवल की ऊर्जा से नारद कुंड में पड़ी भगवान बदरी विशाल के विग्रह को निकाल कर मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया। मंदिर में नियमित पूजा अर्चना एवं इसका कुशल प्रबंधन हो इसके लिए उन्होंने अपने शिष्य टोटकाचार्य को ज्योतिर्मठ मठ का शंकराचार्य नियुक्त किया था।
टोटकाचार्य से रावल परंपरा तक
ज्योतिर्मठ के प्रथम आचार्य टोटकाचार्य से शुरू हुई आचार्य परम्परा 42वें आचार्य रामकृष्ण तीर्थ स्वामी तक निरंतर चलती रही। लेकिन वर्ष 1776 में पीठ के तत्कालीन आचार्य रामकृष्ण तीर्थ ब्रह्मलीन होंने के बाद ज्योतिर्मठ आचार्य विहीन हो गई ।
पीठ के आचार्य के ना रहने के कारण टिहरी राजा की ओर से रावल परंपरा की शुरुआत की गई। इसके बाद बदरीनाथ मंदिर के इतिहास में नया बदलाव आया। ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य की जगह रावल नियुक्ति हुए। दरबार की ओर से मंदिर में नियमित पूजा अर्चना के लिए रावल परंपरा की शुरुआत की गई। इसके तहत तत्कालीन आचार्य के रसोइया गोपाल नंबूदरी को बदरीनाथ मंदिर का पहला रावल नियुक्त किया गया।
पिछले 248 वर्षों से मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में दक्षिण भारत के केरल राज्य के नंबूदरी ब्राह्मण पूजा अर्चना करते हैं। रावल आदि गुरु शंकराचार्य के ही वंशज माने जाते हैं। बदरीनाथ मंदिर में पूजा अर्चना शंकराचार्य परंपरा के अनुसार ही की जाती है।