Jaswant Singh Rawat: भारत का जांबाज जिसके नाम से कांपते हैं चीनी सैनिक !

Jaswant Singh Rawat: इस दुनिया से जाने के बाद भी क्या किसी के अंदर ऐसी देशभक्ति हो सकती है कि वो मरने के बाद देश की रक्षा करता है। क्या ये मुमकिन है कि एक अकेला शख्स 300 लोगों को मार सकता है। ऐसी कहानी आपने अक्सर फिल्मों में देखी होगी, मगर आज आपको ऐसे ही एक जाबांज की कहानी बताने जा रहे हैं जो ना सिर्फ युवा पीढ़ी को प्रेरणा देती है बल्कि एक आम इंसान के भीतर देश भक्ति का जब्जा भर देती है। आज इस बलिदानी, साहसी योद्धा को याद करने का दिन है।

1962 भारत चीन युद्ध के हीरो थे जसवंत सिंह रावत

1962 भारत चीन युद्ध के जंग के हीरो रायफलमैन जसवंत सिंह रावत ऐसे वीर थे जिन्होंने अकेले ही चीन के 300 सैनिकों की लाशें बिछा दी थी। उनके साहस और पराक्रम को सेना आज भी याद रखती है। जसवंत सिंह रावत ने देश के लिए सर्वोच्छ बलिदान दिया। वो 72 घंटे तक भूखे प्यासे चीन के सैनिकों से लड़ते रहे। उन्होंने चीन के सैनिकों की चींख निकाल दी थी।

जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के ग्राम बाडयू पट्टी खाटली, पौड़ी गढ़वाल में हुआ। 16 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह रावत चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हो गए। जसवंत सिंह ट्रेनिंग ले ही रहे थे कि उनकी ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत की उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी थी। धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी सीमा पर युद्ध शुरू हो गया। सेना को कूच करने के आदेश दिये गये। चौथी गढ़वाल रायफल नेफा क्षेत्र में चीनी आक्रमण को रोकने के लिए मोर्चे पर भेज दी गई।

यह स्थान 14,000 फीट की ऊँचाई पर था, चीनी सेना टिड्डियों की तरह भारतीय सैनिकों पर टूट पड़ी। चीनी सैनिकों की अधिक संख्या और बेहतर सामान के कारण भारतीय सैनिकों का हौसला टूट रहा था। दुश्मन के पास एक मीडियम मशीनगन थी, जिसे कि वे पुल के पास तक लाने में सफल हो गये थे। इस एलएमजी से पुल और प्लाटून दोनों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी। ऐसे में जसवंत सिंह रावत ने सूझबूझ दिखाईज सवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के ग्राम बाडयू पट्टी खाटली, पौड़ी गढ़वाल में हुआ। 16 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह रावत चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हो गए। जसवंत सिंह ट्रेनिंग ले ही रहे थे कि उनकी ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत की उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी थी। धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी सीमा पर युद्ध शुरू हो गया। सेना को कूच करने के आदेश दिये गये। चौथी गढ़वाल रायफल नेफा क्षेत्र में चीनी आक्रमण को रोकने के लिए मोर्चे पर भेज दी गई।

युद्ध के दौरान जसवंत सिंह रावत की सूझबूझ आई काम

जसवंत सिंह रावत ने दुश्मन को मात देने के लिए चालाकी से काम लिया, उन्होंने दुश्मन की मशीनगन को लूटने के मकसद से अपने आपको चीन सैनिकों के सामने सरेंडर करने को कहा। तब उनके साथ लान्सनायक त्रिलोक सिंह और रायफलमैन गोपाल सिंह भी तैयार हो गये। ये तीनों जमीन पर रेंगकर आगे बढ़ने लगे, चीन के सैनिकों को लगा कि ये सरेंडर करना चाहते थे, मगर जसवंत सिंह रावत और उनके साथियों के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। ये तीनों मशीनगन से 10-15 गज की दूरी पर जाकर रुके गए। इसी दौरान तीनों ने हथगोलों से चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया और उनकी एलएमजी को अपने पास ले आए।

दुश्मन की LMG लूटकर उसी पर की फायरिंग

जसवंत सिंह रावत ने बहादुरी दिखाते हुए बैरक नं. 1, 2, 3, 4 एवं 5 से निरन्तर, कभी बैरक नं. 1 से तो कभी बैरक न. 2 से गोलियों की बौछार कर शत्रु को 72 घंटे रोके रखा। जसवंत सिंह रावत कभी एक बंकर में जाते, वहां से गोली चलाते, फिर दूसरे बंकर में जाते। चीन के सैनिकों को लगा कि भारत के पास बहुत बड़ी फौज है, जिससे जसवंत रावत ने उन्हें 72 घंटे तक आगे ही नहीं बढ़ने दिया।

3 दिन तक चीन सैनिकों को रोकने के बाद जसवंत रावत हुए शहीद

मगर चीन की सेना को किसी तरह से ये जानकारी मिल गई कि भारतीय सेना के बंकर में सिर्फ एक एकलौते सैनिक ने उन्हें तीन दिन से रोककर रखा है। बताया जाता है कि मठ के एक लामा ने चीनी सेना को ये जानकारी दी थी। जिसके बाद चीन सैनिकों ने उस बंकर को चारों ओर से घेर लिया जिसमें जसवंत सिंह रावत थे, जसवंत सिंह रावत फिर भी बहादुरी से मुकाबला करते रहे, मगर वक्त के कुछ और ही मंजूर था, जसवंत सिंह रावत के पास अब ना तो गोलियां बची थी ना ही कोई और सपोर्ट, इसलिए चीन सैनिकों ने उन्हें बंधक बना लिया। कहा जाता है कि इसके बाद चीनी सैनिकों ने जसवंत सिंह रावत का सर कलम कर दिया।

जसवंत रावत की बहादुरी पर चीन सैनिकों ने भी किया सलाम

चीनी सैनिक जसवंत रावत का सर कलम करने के बाद अपने सेनानायक के पास ले गये। मगर चीन की सेना के ऑफिसर भी जसवंत सिंह रावत की बहादुरी देखकर हैरान रह गए। उन्हें इस बात पर हैरानी हुई कि एक एकलौता सैनिक आखिरकार कैसे तीन दिन तक मोर्चे पर डटा रहा। चीनी सेना के डिब कमाण्डर ने सम्मान के साथ जसवंत सिंह रावत का शव सन्दूक में बंदकर एक पत्र के साथ भारत के पास भेजा। पत्र में लिखा गया था कि भारत सरकार बताये कि इस वीर को क्या सम्मान देंगे, जिसने 3 दिन और 3 रात तक हमारी ब्रिगेड को रोके रखा।

जसवंत सिंह रावत के सम्मान में बनाया गया मंदिर

जसवंत सिंह रावत की इसी बहादुरी की वजह से उनके सम्मान में मंदिर बनाया गया है, नॉर्थ ईस्ट में तेजपुर से तवांग रोड पर 425 कि.मी. पर स्थित शिलालेख पर वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों के नाम अंकित हैं। यहीं पर जसवंत सिंह रावत की स्मृति स्वरूप समाधि मंदिर बनाया गया है।

जसवंत सिंह रावत आज भी जिंदा है, करते हैं सरहद की हिफाजत !

जसवंत सिंह रावत जीते जी तो सरहद की हिफाजत करते ही रही, मगर शहादत के बाद भी वो देश की सेवा में समर्पित है। इसलिए जसवंत सिंह रावत की शहादत के बाद उन्हें प्रमोशन दिया गया। उनके नाम से मंदिर बनवाया गया। 72 घंटे तक अकेले बॉर्डर पर लड़कर शहीद होने वाले भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत आज भी अमर हैं। 24 घंटे उनकी सेवा में सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। यही नहीं, रोजाना उनके जूतों पर पॉलिश की जाती है और कपड़े प्रेस होते हैं।

जसवंत सिंह रावत के जन्मदिन पर सीएम पुष्कर धामी ने दी श्रद्धांजलि

जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के ग्राम बाडयू पट्टी खाटली, पौड़ी गढ़वाल में हुआ। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जसवंत सिंह रावत के जन्मदिन पर उन्हें शत-शत नमन किया साथ ही श्रद्धांजलि भी दी।

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Jaswant Rawat: शहीद जसवंत रावत के जन्मदिन पर सीएम पुष्कर धामी ने दी श्रद्धांजलि

Sat Aug 19 , 2023
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