Dehradun News: उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, ना केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की भाषाई और सांस्कृतिक धरोहर भी अद्वितीय है। इस धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं गढ़वाल और कुमाऊं, जो उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाएं हैं। गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाएं ना केवल इस क्षेत्र के लोगों के आपसी संवाद का माध्यम हैं, बल्कि ये उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक हैं। गढ़वाली भाषा मुख्य रूप से गढ़वाल क्षेत्र में बोली जाती है, जबकि कुमाऊंनी भाषा कुमाऊं क्षेत्र की प्रमुख भाषा है।
गढ़वाली बोली भाषा के प्रचार प्रसार की दिशा में एक बड़े हिंदी न्यूज पेपर अमर उजाला के प्रयास की ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने प्रशंसा की है। इसे लेकर शंकराचार्य ने गढ़वाली भाषा में एक प्रशंसा पत्र मंगल कामना के साथ लिखा है।
गौरतलब है कि अमर उजाला डॉट कॉम की ओर से रंत रेबार कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा है। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस कार्यक्रम को देखने के बाद मंगल कामना पत्र प्रेषित किया है। जिसमें उन्होंने गढ़वाली भाषा में मंगल कामना अपने पत्र में की है।
उन्होंने कहा कि यह सराहनीय प्रयास है। इससे गढ़वाली बोली भाषा के प्रचार प्रसार में मदद मिलेगी। शंकराचार्य ने कहा कि वह इस कार्यक्रम के माध्यम से गढ़वाली बोली सीखने का प्रयास करेंगे और उसके प्रचार प्रसार में खुद भी पहल करेंगे।
गढ़वाली भाषा की जड़ें संस्कृत से भी जुड़ी हैं। यह भाषा अपनी विशिष्ट ध्वनियों और शब्दावली के लिए जानी जाती है। गढ़वाली गीतों और कविताओं में यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक आस्था, और सामूहिक जीवन की झलक मिलती है।
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज हिंदू धर्म की रक्षा और प्रचार के लिए काफी सक्रिय हैं। उनके नेतृत्व में हिंदू धर्म के मूल्यों की रक्षा के लिए समय समय पर अहम कदम उठाए जा रहे हैं।