सावन के महीने में नीलकंठ महादेव पर जलाभिषेक की मान्यता

नीलकंठ महादेव मंदिर की मान्यता

ऋषिकेश: सावन का महीना भागवान शंकर के बहुत ही प्रिय कहा गया है। इस महीने में शिव लिंग पर जलाभिषिके का विशेष महत्व माना गया है। मगर इन सब में भी नीलकंठ महादेव मंदिर (neelkanth mahadev) में तो जलाभिषेक का और महत्व बढ़ जाता है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश की पहाड़ियों के ऊपर स्थित है। भगवान शिव यहां पर पिंडी (शिवलिंग) के रूप में नीलकंठ महादेव के नाम से विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया। अमृतपान के लिए जहां देवताओं और दानवों में संघर्ष शुरू हुआ, वहीं कालकूट हलाहल (विष) की अग्नि से पूरा ब्रह्मांड धधक उठा।

देवताओं की विनती पर जगत के कल्याण हेतु भगवान शिव ने कालकूट विष अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के कारण उनका कंठ नीला (shiv shankar) पड़ गया। विष के प्रभाव से निकली नकारात्मक ऊर्जा के दमन के लिए उन्होंने शिवालिक पर्वत शृंखलाओं की तरफ  प्रस्थान किया और यहीं कई वर्षों तक ध्यानस्थ होकर अपने चित्त को शांत किया।

नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी शिवानंद जी ने नीलकंठ मंदिर की मान्यता के बारे में बताया

नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी शिवानंद जी

नीलकंठ मंदिर (neelkanth mahadev) में भगवान शिव पिंडी और नीलकंठ महादेव के रूप में विद्यमान हैं। पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने श्रावण मास में ही हलाहल को अपने कंठ में धारण किया था। श्रावण मास भगवान शिव को इसलिए भी प्रिय है, क्योंकि 12 महीनों में एकमात्र यही मास नीलकंठ महादेव के गर्म कंठ को शीतलता प्रदान करने में सक्षम हुआ। 

कैसे पहुंचें नीलकंठ महादेव मंदिर

हरिद्वार रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से नीलकंठ महादेव मंदिर (neelkanth mahadev rout ) तक जाने-आने के कई साधन उपलब्ध हैं। हरिद्वार से ऋषिकेश तक बस से आ सकते हैं। वहां से लक्ष्मण और राम झूला से नीलकंठ महादेव मंदिर करीब 30-32 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से टैक्सी किराए पर मिल जाती है। नीलकंठ महादेव मंदिर की यात्रा तब और भी रोमांचकारी हो जाती है, जब आप घुमावदार, संकरे, पर्वतीय रास्ते से गुजर रहे होते हैं और आपके ठीक पास सड़क किनारे कलकल करती नदी बड़े वेग से बह रही होती है। यह गर्मी में भी आपको सर्द मौसम का एहसास करवाती है।

नीलकंठ महादेव मंदिर के दोनों ओर से पर्वतों से मधुमती और पंकजा नाम की दो जलधाराएं निकलती हैं, जो आगे चलकर गंगा में समाहित हो जाती हैं। ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव मंदिर तक पैदल मार्ग (neelkanth mahadev rout ) 11 किलोमीटर के लगभग है। बहुत से श्रद्धालु, खासकर कांवडि़ए इसी मार्ग को प्राथमिकता देते हैं और नंगे पांव गंगा जल लेकर शिवरात्रि के दिन भगवान का जलाभिषेक करते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर से करीब एक किमी. दूर पर्वत शिखर पर मां पावर्ती, मां भुवनेश्वरी के रूप में अधिष्ठित हैं।

नीलकंठ महादेव मंदिर के पास देखने लायक जगह

नीलकंठ महादेव मंदिर के पास एक छोटा बाजार है जहां पर प्रसाद, पूजा पाठ की सामग्री मिलती है। इसलिए आप यहां से खरीदारी कर सकते हैं। इसके साथ ही नीलकंठ मंदिर के पीछे बह रहे एक कुदरती झरने में स्नान कर सकते हैं। ये कुदरती झरना भी उसी समय का बताया जाता है जब भगवान शंकर यहां तपस्या में लीन हुए थे। इसके साथ ही नीलकंठ मंदिर से कुछ ऊपर पहाड़ी पर सिद्ध बाबा (sidh baba temple) का मंदिर है। जो श्रद्धालु नीलकंठ आते हैं वो सिद्ध बाबा के मंदिर जरुर जाते हैं। नीलकंठ मंदिर से कुछ दूरी पर माता पार्वती (mata parwati mandir) का मंदिर स्थित है। नीलकंठ आने वाले श्रद्धालु माता पार्वती के मंदिर भी जरूर आते हैं। भुवनेश्वरी देवी या पार्वती माता (bhuwneshwari devi) मंदिर तक अब सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। अब यहां तक सड़क बन गई है। पार्वती मंदिर में दर्शन के बाद श्रद्धालु और कांवड़िए गणेश गुफा और झिलमिल गुफा (jhilmil gufa) को देख सकते हैं।

झिलमिल गुफा के पुजारी जी ने झिलमिल गुफा की मान्यता के बारे में बताया

झिलमिल गुफा के पुजारी

झिलमिल गुफा तक भी अब सड़क पहुंच गई है। झिलमिल गुफा पहाड़ों में बनी एक प्राकृतिक गुफा है, जहां कुछ साधु तपस्या में लीन रहते हैं। कहते हैं गुरु गोरखनाथ (guru gorahnath) ने इस जगह पर तपस्या की थी। ये काफी रोमांचकारी गुफा है झिलमिल गुफा को आपको जरुर देखना चाहिए। झिलमिल गुफ से कुछ दूरी पर गणेष गुफा (ganesh gufa) है। ये भी पहाड़ में बनी एक कुदरती गुफा है जहां गुफा की दीवारों पर कुत देवी देवताओं के चित्र अंकित हैं।

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