Joshimath City: जोशीमठ का नाम ज्योर्तिमठ किए जाने से संबंधित शासनादेश जिलाधिकारी जोशीमठ की ओर से जारी कर दिया गया है। इस पर ज्योर्तिमठ की जनता और विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों की ओर से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का आभार प्रकट किया गया। सभी लोगों ने विश्वास व्यक्त किया कि ज्योर्तिमठ अपने प्राचीन नाम से जाने जाने के साथ ही अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को बनाए रखेगा।
ज्योर्तिमठ का शासनादेश जिलाधिकारी चमोली की ओर से जारी कर दिए गया है। इससे संबंधित मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सार्वजनिक घोषणा की थी । इसके बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार की ओर से विगत मार्च महीने में इस पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी गई थी। 3 जून को राजस्व सचिव की ओर से सहमति दी गई। चमोली के जिलाधिकारी ने जीओ जारी कर दिया है। ज्योर्तिमठ नाम किए जाने पर विभिन्न धार्मिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार का आभार व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री का आभार जताने वालों में ब्राह्म कपाल तीर्थ पुरोहित पंचायत समिति, बदरीनाथ धाम के अध्यक्ष उमेश सती, हरिश सती , चार धाम महापंचायत के महासचिव डॉक्टर बृजेश सती, देव पूजा समिति ज्योर्तिमठ के अध्यक्ष भगवती प्रसाद नंबूरी, बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल , ज्योतेश्वर महादेव के पुजारी महिमानंद उनियाल , पैंन खंडा संघर्ष समिति के सदस्य मनमोहन विष्ट आदि शामिल हैं।
जोशीमठ के इतिहास के बारे में जानिए
धार्मिक और सांस्कृतिक संजोए रखने वाले शहर जोशीमठ को बद्रीनाथ का द्वार माना जाता है और इसका इतिहास करीब 1500 साल पुराना है। 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य को यहीं ज्ञान प्राप्त हुआ और चार मठों में से पहले मठ की स्थापना उन्होंने जोशीमठ में ही की थी। शंकराचार्य द्वारा इस शहर की स्थापणा की गयी थी I शंकराचार्य के जीवन के धार्मिक वर्णन के अनुसार भी ज्ञात होता है कि उन्होंने अपने चार विद्यापीठों में से एक की स्थापना की और इसे ज्योतिर्मठ का नाम दिया था।
जोशीमठ ही वह स्थान है जहां ज्ञान प्राप्त करने से पहले आदि शंकराचार्य ने पेड़ के नीचे तप किया था। यह कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है और वर्षभर सैकड़ों उपासक यहां आते रहते हैं। इस वृक्ष के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव विराजमान बताए जाते हैं।