Uttarakhand Festival: उत्तराखंड पहाड़ी प्रदेश है, यहां की संस्कृति और सभ्यता इसे बाकी पहाड़ी राज्यों से अलग बनाती है, ये इसलिए क्योंकि यहां पर त्योहार सिर्फ त्योहार नहीं है बल्कि वो जीवन जीने का सलीखा भी सीखाते हैं। जीतू बगड़वाल देवभूमि के पहाड़ी अंचलों में रहने वाले लोगों के खासा महत्व रखते हैं और उनकी जिंदगी का हिस्सा है।
इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में धान की रोपाई शुरू हो गई है। आषाढ़ महीने की रोपाई को बेहद खास माना जाता है। क्योंकि इससे एक पौराणिक जीतू बगड़वाल (jeetu bagadwal) की कहानी को भी जोड़ा जाता है। जानकार बताते हैं कि बैलों की जोड़ी के साथ जीतू रोपाई के समय जमीन में समां गया था। जिसके बाद से जीतू को देवता रूप में पूजा जाने लगा।
क्या है जीतू बगड़वाल की कहानी
कहा जाता है कि जब जीतू अपने गांव से अपनी बहन के ससुराल जा रहा था तो, उसकी मां ने कहा था कि बेटा पहाड़ की चोटी पर बांसुरी मत बजाना। जीतू जब रैथल के जंगल में पहुंचा तो फूलों से भरी पहाड़ियां देखकर उसका मन खो गया। जीतू आराम करने के लिए एक पेड़ की छाया में बैठ गया और बांसुरी बजाने लगा। रैथल का जंगल खैट पर्वत इलाके में पड़ता है। कहा जाता है कि खैंट पर्वत पर परियां रहती हैं।
खैंट पर्वत से जीतू को लेने आई थी परियां
जीतू की बांसुरी की मधुर आवाज सुनकर परियां जिन्हें स्थानीय भाषा में आंछरियां कहते हैं वो खिचीं चली आईं। परियां बांसुरी की धुन पर नृत्य करने लगीं। जीतू के बांसुरी बंद करते ही परियों ने कहा कि हमारे साथ चलो। जीतू ने उनसे कहा कि इस समय छोड़ दो, मगर वो छह गते आषाढ़ को खेत रोपाई के बाद ही उनके साथ चलेगा।
लोग बताते हैं कि इस घटना के बाद जीतू उदास रहने लगा क्योंकि उसे डर था की कहीं परियां उसे अपने साथ परिलोक ना लेकर चली जाएं। इस बीच रोपाई का समय 6 गते आषाढ़ करीब आ गया। जीतू मन ही मन डर को लिये धान के खेत में रोपाई करने चला जाता है, कहते हैं परियां तभी खेत में पहुंच जाती हैं। कहते हैं परियों ने जीतू का हरण कर लिया तभी वो अपने बैलों के साथ भूमि में समा गया।
जीतू बगड़वाल की कहानी उत्तराखंड को लोक गीतों मे भी सुनने को मिलती है। कई उत्तराखंडी गढ़वाली गीतों में इसका जिक्र है। जीतू बगड़वाल से जुड़े कुछ उत्तराखंडी लोक गीत..”नौ बैणी आंछरी ऐन, बार बैणी भराडी, क्वी बैणी बैठींन कंदुड़यो स्वर,क्वी बैणी बैठींन, आंख्युं का ध्वर छावो पिने खून, आलो खाये माँस पिंड, स्यूं बल्युं जोड़ी जीतू डूबी ग्ये, रोपणी का सेरा जीतू ख्वे ग्ये”.. इन गीतों में की बताया गया है कि बैलों की जोड़ी के साथ जीतू रोपाई के खेत में डूब गया। जिसके बाद से जीतू को देवता रूप में पूजा जाने लगा।