Kanwar Yatra 2023: इन दिनों हरिद्वार में कांवड़ यात्रा चल रही है, धर्मनगरी में भोलेनाथ के जयकारों से माहौल गूंज रहा है। शिव भक्तों की जुबां पर सिर्फ एक ही नाम है ‘बम भोले’
मीलों का सफर तय करने वाले कांवड़िये हरिद्वार में हर की पैड़ी पर अपनी कांवड़ सजाकर अपने गंतव्य की तरफ रवाना होने लगे हैं। किसी को 200 किमी जाना है, किसी को 300 किमी तो किसी को उससे ज्यादा। जिसकी मंजिल जितनी लंबी है वो उसी हिसाब ले कांवड़ लेकर अपने गंतव्य की तरफ कूच कर रहा है।
मगर आपके जेहन में सवाल ये जरूर उठता होगा कि आखिरकार ये कांवड़िये कांवड़ लेकर क्यों जाते हैं, क्या ये कोई ट्रेंड बन गया है या फिर वाकई कोई ऐसी शक्ति है जो इन कांवड़ियों को हर साल हरिद्वार खींच लाती है। कांवड़ को लेकर हमने हिंदू धर्म से जानकारों से बात की और इस बारे में उनका तर्क जानने की कोशिश की। जानकारों ने बताया कि मौजूदा समय में भले ही कांवड़ का स्वरूप बदल गया हो, मगर पौराणिक समय से ही कांवड़ की प्रथा चली आ रही है। पहले इस पर्व को अलग रूप में मनाया जाता था, मगर आधुनिकता के दौर में इसका रूवरूप पहले से बदल चुका है।
ऐसे शुरू हुई कांवड यात्रा
कांवड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग जगहों की अलग मान्यताएं रही हैं। ऐसा मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर बागपत के पुरा महादेव में भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाया था, तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी। गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर उन्होंने पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक, किया था। आज भी उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है वहां से जल लाकर लाखों लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर उसे चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हैं।
यूं हुई शुरुआत
भगवान शिव को प्रसन्न करने केलिए परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल कांवड़ में लाकर पुरामहादेव मंदिर में चढ़ाते थे,तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। परशुराम वहीं पास के वन में एक कुटिया बनाकर रहने लगे। थोड़े दिन बाद ही उन्होंने अपने फरसे से सम्पूर्ण सेना सहित राजा सहस्त्रबाहु को मार दिया और जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी वहां एक मंदिर भी बनवा दिया। कालान्तर मंदिर खंडहरों में बदल गया। जबकि काफी समय बाद एक दिन रानी इधर घूमने निकली तो उसका हाथी वहां आकर रूक गया। महावत की बड़ी कोशिश के बाद भी हाथी वहां से नहीं हिला,तब रानी ने सैनिकों को वह स्थान खोदने का आदेश दिया। खुदाई में वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ जिस पर रानी ने एक मंदिर बनवा दियाष यही शिवलिंग और इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है।
किसने की अब तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा?
सवाल ये भी उठता है कि अब तक ऐसा कौन शिव भक्त है जिसने सबसे लंबी कांवड़ यात्रा की है। इंटरनेट पर सर्च करने के बाद पता चला कि एक शिव भक्त ने 22 जुलाई 2016 को हरिद्वार से जल लेकर बाबा विश्वनाथ वाराणसी में 18 दिनों के पैदल यात्रा के कर चढ़ाया था, इस दौरान उन्होंने 1032 किलोमीटर पैदल यात्रा की थी। ये अभी तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा कही जाती है। हालांकि इसकी प्रमाणिकता बाकी है।