हरिद्वार और गंगा का महत्व
गंगा नदी के किनारे स्थित हरिद्वार पौराणिक काल से हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक अहम स्थान रहा है। ये स्थान सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों की आस्था का केंद्र बिंदू रहा है। सदियों से करोड़ों की संख्या में तीर्थ यात्री इस पवित्र नगरी में गंगा स्नान के लिए आते रहे हैं।
भगीरथ से जुड़ी गंगा की मान्यता
पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगीरथ अपने पुरखों की मुक्ति के लिए गंगा को धरती पर लेकर आए थे। कहा जाता है कि गंगा का वेग काफी तेज था। इसलिए भगवान शिव ने उसके वेग को अपने जटाओं से रोक लिया। जिसके बाद गंगा हरिद्वार में आकर गिरी, और भगीरथ के पितरों को मुक्ति मिल गई।
समुद्र मंथन से जुड़ी गंगा की मान्यता
समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से अमृत निकला तो दैत्यों और देवताओं में इसे लेकर छीना छपटी होने लगी। देवराज इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर उड़ गए। बताया जाता है कि उसी कलश में से अमृत की कुछ बूंदे छलकर चार स्थानों पर गिर गईं। जिससे ये चार स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों में प्रयाग, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार। तभी इसे इन चारों स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होने लगा, और सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग इस धार्मिक शहर में आने लगे।
हरिद्वार नगर की मान्यता
हरिद्वार नगर का अपने सदियों पुराना इतिहास है। ये स्थान सदियों से धार्मिक नगर के रूप में महत्व रखता आ रहा है। जानकार बताते हैं कि लगभग 2 हजार 3 सौ साल पहले मौर्यकाल के दौरान भी गंगा भारत की पवित्र नदी थी। तब भी गंगा की वैसे ही पूजा होती है जैसे की आज होती है। 350 ई में गुप्तकाल के दौरान, समुद्र गुप्त के समय में गंगा के समुचित प्रवाह के लिए एक नहर बनाई गई थी। आज भी वही नहर ब्रह्मकुंड से होकर गुजरती है। उसके बाद सम्राट चंद्रगुप्त ने 370 ई. में इस नगर के किनारे घाट बनवाएं। कहते हैं कि ये घाट आज भी मौजूद है, ब्रह्मकुंड में बनी सीढ़ियां उसी जमाने की बताई जाती हैं। इन सीढ़ियों को हर की पैड़ी कहा जाता है। 7वीं सदी में प्रसिद्ध चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग भी हरिद्वार आया था। कहा जाता है कि तब ह्वेनसांग ने हरिद्वार में कुछ दिन गुजारे थे। उसने अपने लेख में हरिद्वार का जिक्र किया था। उस समय हरिद्वार को मायापुरी और गंगाद्वार कहा जाता था। इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि ये धार्मिक शहर सदियों से सनातन धर्म की ध्वजा को गौरव से फैहराता आ रहा है।
ब्रह्म कुंड की मान्यता
हर की पैड़ी के पास ही ब्रह्मकुंड है, कहा जाता है कि वहां पर ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी। ब्रह्मकुंड को हरिद्वार में सबसे पवित्र माना जाता है। इस स्थान पर स्नान का सबसे अधिक महत्व है। ब्रह्मकुंड में ही मां गंगा का प्राचीन मंदिर है। इसी जगह पर हर शाम गंगा आरती का आयोजन होता है।
15वीं शताब्दी में सिखों के पहले गुरु गुरु नानकदेव ने भी हरिद्वार में आध्यात्म की अलख जगाई थी। महान झांसी रानी लक्ष्मीबाई भी हरिद्वार आई थी। आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी हरिद्वार से है वैदिक क्रांति शुरू की थी। पांडवों ने भी अपने स्वर्गारोहण की शुरुआत हरिद्वार से ही की थी। हरिद्वार में सबसे पुराना मंदिर माया देवी के मंदिर को कहा जाता है। इसी वजह से हरिद्वार से सबसे पुराना नाम मायापुरी था। जो बाद में बदलकर हरिद्वार हो गया।