हरिद्वार: महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद पांडव स्वर्गारोहण के लिए निकले थे। कहते हैं उस समय पांडव हरिद्वार से होते हुए अपने सफर पर आगे बढ़ रहे थे। इसी बीच हरिद्वार पहुंचते ही द्रौपदी को प्यास लगने लगी। कहीं पर पानी कोई इंतजाम नहीं था तो फिर महाबली भीम ने उस समय द्रौपदी की प्यास बुझाने के लिए धरती में इतनी जोर से प्रहार किया तो वहीं से पानी की जलधारा फूट पड़ी। मगर यहां सवाल ये उठता है कि जब हरिद्वार से गंगा निकल रही है तो क्या उस समय पांडव गंगा नदी के जल से अपनी प्यास नहीं बुझा सकते हैं। इसके पीछे जानकार ये तर्क देते हैं कि उस समय गंगा नदी का बहाव हर की पैड़ी की तरफ नहीं था। गंगा नदी वहां से काफी दूर थी। हो सकता है पांडवों को उस समय वहां तक पहुंच पाने में कोई परेशानी हुई हो। क्योंकि उस जमाने में पानी के लिए कुदरती स्रोत पर ही इंसान निर्भर थे। इसलिए इस भीमगोड़ा की मान्यता को थोड़ा बल जरूर मिलती है।
जैसा का नाम से प्रतीत है भीमगोड़ा, (Bhimgoda in Haridwar) यहां भीम शब्द पांडवों के पुत्र भीम के लिए इस्तेमाल हो रहा है गोड़ा मतलब पैर से तात्पर्य है। जिसके बाद कालांतर में इस स्थान को भीमगोड़ा कुंड के नाम से जाना जाने लगा था। मान्यता के अनुसार यहीं से पांडव ने अपनी प्रसिद्ध स्वर्गारोहण यात्रा भी शुरू की थी। ये यात्रा पथ इसके पास से ही गुजरता है। बाद में अंग्रेज सरकार ने इसके पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के चलते 1842 से 1854 के बीच भीमगोड़ा कुंड को विस्तार देकर इसमें गंगाजल भरने के लिए छोटी नहर का निर्माण कराया था।
प्राचीन काल का शिवलिंग
हर की पैड़ी से महज 200 मीटर की दूरी पर भीमगोडा है, जहां आसपास एक घनी आबादी बसी हुई है। भीमगोडा में प्राचीन काल का एक शिवलिंग है। माना जाता है कि जब पांडव यहां आए थे, तो उन्होंने भगवान शंकर की आराधना के लिए यहां रेत का शिवलिंग बनाया था। इस शिवलिंग के सामने बैठकर ही उन्होंने भगवान शंकर की आराधना की थी। वहीं भीमगोडा में गुप्त गंगा का भी स्थान है, जहां पर पिंडदान करने का काफी ज्यादा महत्व बताया गया है। भीमगोडा में भीम के नाम से भीमसेन मंदिर भी बना हुआ है। ये मंदिर पहाड़ में छोटी सी गुफा के आकार में है।