उत्तरकाशी में द्रौपदी के डांडा में हिमस्खलन में दबे पर्वतारोहियों को खोजने में रंगीन रस्सी ने खोजी दलों की मदद की। ट्रैक के ऊपर से जब हेलीकॉप्टरों ने उड़ान भरकर रेकी तो पर्वतारोहियों की रंगीन रस्सी सफेद बर्फ पर दिखाई दी। काफी दूर तक ये रस्सी दिख रही थी। इसके बाद वहां पर करीब डेढ़ दिन की मेहनत के बाद संयुक्त खोजी दल पहुंचा और मैन्युअली लोगों (शवों) की तलाश में जुट गया। जो लोग गहरे क्रेवास में फंसे हैं, उन्हें निकालने में समय लग रहा है। इसके साथ ही मौसम भी दुश्वारियां खड़ी कर रहा है।
दरअसल, बर्फ में कई फीट या मीटर गहराई तक दबे शवों को खोजने के लिए कोई विशेष तकनीक खोजी दल के पास नहीं होती है। इसके लिए मैन्युअल ही उन्हें चढ़ाई वाले रास्ते से अंदाजा लगाकर खोजा जाता है।द्रोपदी का डांडा में हुए हिमस्खलन में भी इसी तरह मैन्युअली खोजी अभियान चलाया गया। एसडीआरएफ कमांडेंट मणिकांत मिश्रा ने बताया कि पर्वतारोहण के लिए एक विशेष ट्रैक का ही इस्तेमाल किया जाता है। इस पर्वत पर चढ़ने के लिए चुनिंदा ट्रैक हैं। सेना के चीता हेलीकॉप्टर ने इन ट्रैक के ऊपर से उड़ान भरी और एक दिन तक रेकी की।
क्या होता है गलेशियर का क्रेवास
ग्लेशियर की बड़ी दरारों को क्रेवास कहा जाता है। यह दरार बहुत गहरी होती हैं। इनके ऊपर बर्फ जम जाती है। इसलिए यह दरारें ऊपर से दिखाई नहीं देती। ग्लेशियर में अगस्त-सितंबर में बहुत अधिक मात्रा में क्रेवास बनते हैं। इस दौरान ग्लेशियर के ऊपर जमी बर्फ की परत पिघल जाती है।