Pushkar Singh Dhami: श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, ऐसे में जगह जगह लोग अपने पितरों को याद कर रहे हैं और तर्पण संस्कार जैसे जरूरी कर्म कर रहे हैं। इस कड़ी में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (pushksr dhami) ने अपने पितरों को याद किया। मुख्यमंत्री धामी ने अपने पिता के श्राद्ध पर उन्हें याद किया। मुख्यमंत्री धामी ने विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की।
- पितृ पक्ष का महत्व समझने के लिए
- मृत्यु के बाद आत्मा कहां चली जाती है?
- क्या तर्पण करने से पितृऋण कम होता है?
- क्या पितृपक्ष में आत्माएं धरती पर आती हैं?
मान्यता है कि दिवंगत आत्मा में अलौकिक शक्ति होती है। पितरों के नाम पर किए गए पुण्यकर्म आत्माओं तक पहुंचते हैं और उनकी निवृत्ति में सहायता करते हैं। भावनाएं मन प्रधान होती हैं और आत्माएं मानसिक सृष्टि पर रहती हैं
अब सवाल ये है कि पितरों को अर्पित किया गया जल उन तक कैसे पहुंचता है?
मान्यता है कि जल कई रूपों में बदल जाता है। पितरों (pitra paksha) को दिया गया जल पहले वायु रूप में बदलता है। फिर वायु रूप से आकाश रूप में। आकाश रूप से सूक्ष्म रूप में बदलता है और पितरों की तृप्ति करता है। पितरों को तर्पण सिर्फ उनके दूसरा जन्म लेने तक ही सीमित नहीं है। आपके किसी पूर्वज ने यदि दूसरे शरीर में जन्म ले लिया, तो तर्पण उनकी संतुष्टि और आध्यात्मिक उन्नति का सहायक बनता है। सरल शब्दों में तर्पण वास्तव में एक चक्र है, जो लगातार चलता रहता है।
पितृलोक के स्वामी यमराज हैं। जलदान से यमराज संतुष्ट होते हैं, तो पितरों को भी सुख मिलता है। बशर्ते आत्मा पितृलोक तक पहुंच गई हो। ऐसी मान्यता है कि नश्वर शरीर छोड़ने के 12 दिन बाद तक आत्मा प्रेतयोनि में रहती है।
इस बारे में कई और जानकारियां मिलती हैं। मसलन, श्राद्ध करने वाला व्यक्ति अधिकतम तीन पीढ़ियों का ही श्राद्ध करता है। इसमें पिता, दादा और परदादा शामिल होते हैं। तर्पण के लिहाज से वसु को पिता, रुद्र को दादा और आदित्य यानी सूर्य को परदादा का स्वामी माना गया है। इन्हें चढ़ाया गया अन्न या जल सूक्ष्म रूप में पूर्वजों तक पहुंच जाता है। श्राद्धकर्ता से प्रसन्न होकर पूर्वज उसे आयु, बुद्धि, विद्या, धन और संतान का आशीर्वाद देते हैं।