Pushkar Singh Dhami Meeting: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की समीक्षा बैठक की। इस दौरान सीएम धामी ने अधिकारियों को बच्चों में कुपोषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री और एएनएम के माध्यम से गर्भवती माताओं का ट्रैकिंग सिस्टम अपडेट रखने के निर्देश दिए। बैठक में अधिकारियों को बच्चों में कुपोषण पर प्रभावी नियंत्रण के निर्देश दिए गए। इस दिशा में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों और एएनएम के माध्यम से गर्भवती माताओं का ट्रेकिंग सिस्टम अपडेट रखने पर जोर दिया गया।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि अधिकारियों को निर्देशित किया कि एनीमिया की कमी को दूर करने के लिए मिलेट्स की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रदेश सरकार कुपोषण से मुक्ति, मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए हर संभव कार्य कर रही है।
पूरा विश्व आज मिलेट्स पर बात कर रहा है। इसे लेकर UNO तक गंभीर है। मगर क्या आपको पता है कि आज जिन मोटे अनाजों को ले करके पूरी दुनिया इतनी गंभीर हुई है, यह मोटे अनाज कभी उत्तराखंड की परंपराओं में शामिल हुआ करते थे।
मोटे अनाज में पाए जाने वाले पोषक तत्व: मोटे अनाज में अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं।
मंडुवा पहाड़ में उगाए जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण मोटा अनाज है, जिसमें 1.3% प्रोटीन, 1.3% फैट और 328 कैलोरी पाई जाती है।
झंगोरा भी पहाड़ में उगाए जाने वाला मोटा अनाज है, जिसमें 6.2% प्रोटीन, 5.8% फैट और 309 कैलोरी प्रति 100 ग्राम में मिलती है।
उत्तराखंड में कहां कहां पर हो रही मिलेट्स की खेती
उत्तराखंड में मोटे अनाज यानी मिलेट्स में ज्यादातर मंडुवा उगाया जाता है। मंडुवा राज्य के 13 जिलों में से तकरीबन 11 जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह कुल कृषि का तकरीबन 9 फीसदी कृषि क्षेत्र है। उत्तराखंड के हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, देहरादून जिले के कुछ भाग को छोड़कर पहाड़ी जिलों में कई जगह पर मोटे अनाज के रूप में मडुवे की खेती हो रही है। पौड़ी गढ़वाल में सबसे ज्यादा 25,430 हेक्टेयर भूमि पर मंडुवा का उत्पादन किया जा रहा है। वहीं दूसरे स्थान पर टिहरी में 15,802 हेक्टेयर भूमि पर 21,047 मीट्रिक टन मंडुवे की खेती हो रही है। चमोली जिले में 10,639 हेक्टेयर भूमि पर 17,942 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है।
उत्तराखंड की परंपराओं में था मोटा अनाज: उत्तराखंड तकरीबन 53,483 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। राज्य प्राकृतिक संपदा से ओतप्रोत और अपने आप में असीम जैव विविधता लिए हुए है। उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय इलाके अपना समृद्ध इतिहास रखते हैं। उत्तराखंड के गांवों में बने सीढ़ीनुमा खेत आज भी कृषि कार्यों के लिए मौजूद हैं।
एक दौर था जब पहाड़ के गांवों खेतीबाड़ी की वजह से संपन्न दिखाई दिया करते थे। किसान अपने गुजारे लायक फसल उगा लेते थे मगर वो फिर भी हंसी खुशी से जीवन जीते थे। दशकों पहले तक उत्तराखंड के गांवों में कई प्रकार के मोटे अनाज खेतों में हुआ करते थे। पहाड़ों पर होने वाली खेती यहां की संस्कृति और परंपराओं का एक हिस्सा हुआ करती थी। पहाड़ों पर उगने वाला कोदा, झंगोरा, कोणी, चीणा, मारसा पहाड़ के धार्मिक पूजा पाठ और अनुष्ठानों का अहम हिस्सा हुआ करते थे। वहीं यही मोटे अनाज पहाड़ के हर एक व्यक्ति का भोजन हुआ करता था।
मगर समय बीतने के साथ और आधुनिकीकरण के चलते मोटे अनाज केवल गरीबों का खाना माने जाने लगे। ग्लैमर के इस युग में बाजारीकरण ने अपनी जगह बनाई। लिहाजा उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में उगाए जाने वाला मोटा अनाज धीरे-धीरे अपना महत्व खोता चला गया। हालांकि आज भी उत्तराखंड के कई गांव में लोग मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं। पिछले कुछ साल से हो रही प्रयासों की बदौलत अब जब लोगों में इस मोटे अनाज को लेकर के जागरूकता आई है, तो सरकार को वापस इस मोटे अनाज के प्रति मुहिम चलाने की जरूरत आन पड़ी है।
उत्तराखंड में तेजी से घटा है कृषि क्षेत्र:
राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कुल 7.70 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती थी जो कि इन 23 सालों में घटकर 1.49 लाख हेक्टेयर भूमि में सिमट कर रह गई है। यानी कि इस दौरान कई हेक्टेयर भूमि बंजर हुई है। उत्तराखंड में लगातार हुए पलायन और उजड़ते गांवों के कारण समाज के साथ-साथ यहां पर होने वाली खेती ने भी अपना अस्तित्व तकरीबन खो दिया है।