- शंकराचार्य के प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट में 24 दिन और सुप्रीम कोर्ट में 4 दिन तक अपना पक्ष रखा
- ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के वकीलों ने 350 प्रमाण अदालत में पेश किए
- एक्सपर्ट विटनेस के रूप में न्यायाधीश ने लिया ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम
Ram Mandir: इस समय पूर देश में अयोध्या राम मंदिर की चर्चा हो रही है। 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है, जिसके लिए तैयारियां जोर शोर से चल रही है। मगर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले ही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद क्रोध में नजर आ रहे हैं। ज्योतिपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वानंद सरस्वती का कहना है कि वे अपने गुरुओं का बलिदान को याद ना किए जाने से काफी आहत हैं। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि राम मंदिर में शंकराचार्यों का भी काफी योगदान रहा है, इसलिए राम मंदिर से जुड़े सभी ज्ञात और अज्ञात पहलुओं को जनता के सामने रखना जरूरी है। अविमुक्तेश्वानंद सरस्वती ने कहा जिस तरह से जनसंचार और अन्य माध्यमों में शंकराचायों के योगदान को लेकर तरह-तरह की टिप्पणी की जा रही है, ऐसे में सभी देशवासियों को सत्य और तथ्यों को जानना जरूरी है।
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वानंद सरस्वती का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में राम मंदिर से जुडे प्रकरण पर 90 दिनों तक बहस चली। जिसमें 50 दिन मुस्लिम पक्ष और 40 दिन हिंदू पक्ष को सुना गया। इसमें से भी 24 दिन लगातार शंकराचार्य जी के पक्ष को सुना गया था। जिसमें शंकराचार्य के वकीलों के पैनल ने राम जन्मभूमि से सम्बन्धित 350 प्रमाण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए। इसमें से भी एक्सपर्ट विटनेस के रूप में माननीय न्यायाधीश ने स्वयं उनके नाम (अविमुक्तेश्वरानंद) लिया था।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में भी लगातार 40 दिनों तक मंदिर मामले में सुनवाई हुई। जिसमें चार दिनों तक लगातार शंकराचार्य की ओर से स्वयं उनके और वकील पीएन मिश्रा, रंजना अग्निहोत्री एवं वकीलों के पैनल ने अपना पक्ष रखा।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी ने कहा कि आज जानबूझकर हिंदू समाज में शंकराचार्य के योगदान को कम करके बताया जा रहा है। जबकि सच्चाई ये है कि शंकराचार्यों और देश के संतों के योगदान से ही राम मंदिर का समाधान हुआ।
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि साल 1992 में विश्व हिंदू परिषद और कांग्रेस मिलकर राम जन्मभूमि से 192 फीट दूर मंदिर का शिलान्यास कर रहे थे । लेकिन उस समय के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने दोनों पक्षों की साथ गांठ को सार्वजनिक कर इस फैसले को अस्वीकार कर दिया। शंकराचार्य के योगदान के कारण ही आज अयोध्या में राम जी प्रतिष्ठित हो रहे हैं और हिंदुओ को उनका खोया गौरव वापस मिल रहा है।
मगर दुर्भाग्य की बात है कि इस बड़े मौके पर भी शंकराचार्य के योगदान को भुलाया जा रहा है।