Dehradun News: (बृजेश सती जी की कलम से) शंकराचार्य के शताब्दी जयंती वर्ष पर विशेष
शंकराचार्य की परम्परा भारतवर्ष में बहुत पुरानी है। सनातन हिंदू धर्म को जिंदा रखने और मजबूती देने का काम शंकराचार्य ही करते आए हैं। शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। देश में चार मठों के चार शंकराचार्य होते हैं। मगर आज हम बात कर रहे हैं ब्रहमलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की।
ब्रहमलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती देश के इकलौते ऐसे संत हैं । जिन्होंने दो पीठों के शंकराचार्य पद को सुशोभित किया। शंकराचार्य परंपरा के इतिहास में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ही ऐसे शंकराचार्य हैं जो दो पीठों ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के आचार्य पद पर आरूढ रहे। उन्होंने 49 वर्षों तक ज्योर्तिमठ और 40 वर्षों तक आचार्य परंपरा का निर्वहन किया।
ब्रहमलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के बारे में जानिए
शंकरावतार आदि गुरु शंकराचार्य
भगवतपाद आदि गुरू शंकराचार्य का आभिर्वाह पांचवी सदी के शुरुआत में केरल के कालडी गांव में हुआ था। शंकराचार्य अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रणेता, मूर्तिपूजा के पुरस्कर्ता, पंचायतन पूजा के प्रवर्तक हैं। उन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के अलावा देश के लोंगों को एक सूत्र में पिरोने का अद्बितीय कार्य किया। कई भाष्यों की रचना की, जिसके कारण उन्हें भाष्यकार के रूप में भी पहचान मिली। जनसामान्य ने उनको भगवान शंकर का ही अवतार माना। इसलिए उनके नाम के साथ भगवान शब्द जोड़ा गया और वह भगवान आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से विख्यात हैं। शंकराचार्य ने भारत वर्ष में चार मठों की स्थापना की। इनके संचालन और कुशल प्रबंधन के लिए गद्दी के अधिकारी आचार्य को पदारूढ किया, जो शंकराचार्य कहे जाते हैं।
वर्तमान में चार-पीठों के शंकराचार्य
वर्तमान समय में भारत के चार पीठों में चार शंकराचार्य हैं। इसमें उत्तर भारत के ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज, पश्चिम में स्थित द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती महाराज, दक्षिण भारत के श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ महाराज और पूर्वोत्तर में जगन्नाथ पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चचलानंद सरस्वती हैं। ज्योर्तिमठ और द्वारका शारदा पीठ के वर्तमान शंकराचार्य दोनों ही ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के शिष्य हैं।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का जन्म संवत 1980 के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (आंग्ल गणना अनुसार 2 सितंबर 1924 ईसवी ) के दिन मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जनपद के दिघोरी गांव में हुआ था। नौ वर्ष की अल्पावस्था में ही सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर धार्मिक यात्राओं की ओर प्रवृत हुए। विभिन्न क्षेत्रों की धार्मिक यात्रा करने के बाद उन्होंने गाजीपुर की रामपुर पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद काशी आकर ब्रह्मलीन धर्म सम्राट करपात्री महाराज एवं स्वामी महेश्वरानंद जी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों से वेद वेदांग , शास्त्र एवं पौराणिक इतिहास तथा न्याय ग्रंथों का अध्ययन किया । बहुत कम समय में वे उच्च कोटि के विद्वानों की श्रेणी में शामिल हो गए।
स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे स्वरुपानंद सरस्वती
देश की आजादी के आंदोलन ने गति पकड ली थी। सन् 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आह्वान के साथ आप भी आजादी के आंदोलन का हिस्सा बन गए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती क्रांतिकारी साधु के नाम से विख्यात हुए। आंदोलन के दौरान आपने एक गांव से अंग्रेजों को खडेद दिया था। क्रांतिकारी साधु को मध्य प्रदेश व वाराणसी की जेलों में 9 और 6 माह तक रखा गया।
शंकराचार्य पद पर अभिशिक्त
आपके धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्रियाकलाप निरंतर चलते रहे। वर्ष 1973 में आपके आध्यात्मिक जीवन में एक नया मोड़ तब आया। ज्योतिषपीठ के तत्कालीन आचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी के ब्रहमलीन होने पर स्वामी स्वरुपानंद नंद सरस्वती को शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया । इस बीच सन् 1982 में आपको द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य पद पर भी अभिषिक्त किया गया। तब से अंतिम सांस तक आपने दोनों पीठों के आचार्य पद को सुशोभित किया।
सामाजिक गतिविधियां
धार्मिक एवं माध्यमिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के साथ ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भी योगदान दिया । सन 1985 से 88 तक गुजरात और राजस्थान में 3 वर्षों तक अकाल पड़ा। जिसमें वहां पशुधन खासतौर से गोवंश के लिए चारा का अभाव हो गया था। ऐसी स्थिति में आपने देश भर से पशुधन के लिए चार एकत्रित कर प्रभावित राज्यों में भिजवाया। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिलाने में आपकी विशेष भूमिका रही । 17 जून 2008 को बदरीनाथ मंदिर परिसर में आयोजित अभिनंदन सभा में आपने राष्ट्रव्यापी गंगा सेवा अभियान प्रारंभ करने की घोषणा की। ब्रहमलीन शंकराचार्य के आशीर्वाद और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के नेतृत्व में देश भर में आंदोलन चलाया गया । इसकी परिणीति रही कि 16 अक्टूबर 2008 को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया। इतना ही नहीं आपने दलितों ,शोषितों और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए भी कहीं महत्वपूर्ण कार्य किये।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने देश के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य से जुडे प्रतिष्ठानों को स्थापित किया । इसके अलावा देश के विभिन्न प्रांतों में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार अध्ययन एवं अध्यापन के लिए संस्कृत विद्यालयों की भी स्थापना की। जहां वर्तमान में हजारों छात्र अध्ययनरत हैं।
राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका
राम जन्मभूमि आंदोलन में भी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की भूमिका अविस्मरणीय रही। आपके पावन सानिध्य में राम जन्म भूमि सुधार समिति द्वारा देशभर में विरोध आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन के तहत स्वामी जी को गिरफ्तार भी होना पड़ा और चुनार जिले की अस्थाई जेल में 9 दिनों तक रखा गया ।
30 नवंबर 2006 को अयोध्या में आपके नेतृत्व में हजारों श्रद्धालुओं ने राम जन्म भूमि की परिक्रमा की। देश के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली आपदाओं में भी आपने प्रभावित पीड़ित परिजनों को ज्योर्तिमठ एवं द्वारका शारदा पीठ की ओर से यथासंभव सहायता उपलब्ध कराई ।
73 चातुर्मास करने वाले एक एकमात्र संत
भगवतपाद आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक उत्तर दिशा में ज्योतिष्पीठ(ज्योतिर्मठ) है। जिसमें बालब्रह्मचारी और दीर्घजीवी आचार्यों की परम्परा रही है। इसी आचार्य परंपरा के वाहक थे, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज। वे जीवन के अंतिम समय तक (99 वर्ष) आचार्य परंपरा का निर्वहन करते रहे।
उल्लेखनीय है कि दण्डी सन्यासियों की वरिष्ठता का आधार चातुर्मास से की जाती है। ब्रहमलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती महाराज दण्ड सन्यास के बाद 73 चातुर्मास करने वाले एकमात्र संयासी थे। वर्ष 1973 में उन्हें ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य पद पर अभिषेक किया गया और 1982 में वे द्बारका पीठ के शंकराचार्य बने। बीते साल 11 सितम्बर को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज ब्रहमलीन हो गए।
इस लेखन के लिए बृजेश सती जी का विशेष आभार