Chandrayaan-3 Moon Landing: हर किसी के जेहन में सवाल ये उठता होगा कि दुनिया के कई देश तकनीक के मामले में भारत से कहीं आगे हैं, फिर वो अब तक चांद पर अपने स्पेसक्राफ्ट को क्यों लैंड नहीं कर पाए, खासकर उस हिस्से साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर जहां पर भारत का चंद्रयान-3 लैंडिंग करने जा रहा है। आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देने जा रहे हैं। मगर सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि किसी भी स्पेसक्राफ्ट के लिए लैंडिंग करना बेहद ही जटिल प्रक्रिया है। लैंडिंग से पहले करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी की मुश्किल यात्रा पर विचार करना जरूरी है।
Chandrayaan-3 News in Hindi: दरअसल बात 2019 की है। तब भारत का चंद्रयान-2 चांद की सतह पर उतरने की तैयारी कर रहा था। तब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO के प्रमुख रहे के सिवन ने लैंडिंग के आखिरी 15 मिनटों को बेहद ही क्रूसियल बताया था, उन्होंने कहा था कि लैंडिंग के ये 15 मिनट बेहद ही अहम होते हैं, इन 15 मिनट पर वैज्ञानिकों की पूरी मेहनत टिकी होती है। क्योंकि लैंडर की साफ्ट लैंडिंग होना बेहद जरूरी है, जब एक बार लैंडर चांद की सतह पर लैंड करने लगेगा और अगर उस समय कोई खराबी होती है तो फिर उस समय कुछ भी कर पाना लगभग नामुकिन है। जैसा का चंद्रयान-2 के समय हुआ था।
चांद पर अब तक का क्या रहा है इतिहास?
चांद पर अब तक दुनियाभर से 20 से ज्यादा बार मिशन लॉन्च हो चुके हैं। इनमें से 6 बार चांद पर इंसान भी मौजूद रहे। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक चांद की सतह पर उतरने की कला में माहरत हासिल नहीं कर सके हैं। बीते 10 सालों में सिर्फ चीन ही तीन बार चांद पर उतरने में सफल हुआ है। इससे पहले अधिकांश लैंडिंग 1966 और 1976 के बीच हुई थी।
चांद की सतह पर लैंडिंग बेहद मुश्किल
धरती से सफर पर निकलने के बाद स्पेसक्राफ्ट को करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी की मुश्किल यात्रा करनी पड़ती है। अब इतनी लंबी यात्रा के दौरान कहीं भी मिशन के असफल होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। अब एक वजह ये भी कि पृथ्वी पर वापस लौटते वक्त अंतरिक्ष यान हमारे ग्रह के घने वातारण पर निर्भर रह सकता है। दरअसल, इसकी मदद से यान को पर्याप्त घर्षण मिलता है और वह सुरक्षित तरीके से उतर सकता है। वहीं, चांद की अगर बात करें तो वहां पतले वातावरण के चलते यह मुश्किल प्रक्रिया है। ऐसे में चांद पर लैंडिंग के वक्त प्रोपल्शन सिस्टम ही यान की मदद करता है। आसान भाषा में समझें तो यान को अपने साथ काफी ईंधन ले जाना होगा, ताकि वह लैंडिंग के दौरान रफ्तार को धीमा कर सके।
धरती पर तो मौजूदा समय में दिशा का पता करने के तमाम साधन हैं, मगर चांद पर ऐसे कुछ भी नहीं है, जैसे की धरती पर हम तारों को देखकर, पेड़ों की परछाई देखकर और कंपास से दिशा का पता कर सकते हैं। मगर चांद पर जीपीएस नहीं होता। ऐसे में लैंडर में मौजूद कंप्यूटर्स को गणना करके लैंडिंग की जगह को लेकर तत्काल फैसला लेना होता है। इसमें जरा भी चूक हुई तो लैंडर चांद की सतह पर गिरकर क्रैश हो सकता है। क्योंकि लैंडर को लैंड करने के लिए सपाट जगह ढूंढनी होगी, जिससे की सॉफ्ट लैंडिंग हो सके। यह प्रक्रिया तब और मुश्किल हो जाती है, जब लैंडर चांद की सतह से कुछ ही किमी दूर रह जाता है। साथ ही चांद की सतह पर धूल, बड़े पत्थर और गहरी खाइयां भी परेशानी पैदा कर सकती हैं।