Kedartal Track: केदारताल ट्रैक गंगोत्री धाम से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। केदारताल ट्रैक उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय ट्रैक में से एक है। केदारताल दरअसल पहाड़ की चोटियों पर बनी एक कुदरती झील है। जिसके पानी का मुख्य स्रोत झील के आसपास में स्थित ग्लेशियर्स जैसे माउंट थलयसागर ( 6904 मीटर ), माउंट भृगुपंथ (6,772 मीटर) और माउंट मेरु (6,672 मीटर) जैसे हिमालय के विशाल पर्वत है।
इसके अलावा केदारताल केदारगंगा जैसी पवित्र नदी का उद्गम स्थल भी माना जाता है। केदारगंगा आगे जाकर भागीरथी नदी में विलय हो जाती है। भागीरथी नदी देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाता है जहां से आगे ये गंगा के नाम से जानी जाती है। इस तरह से देखा जाए तो गंगा नदी में केदारगंगा का भी पानी आता है।
गंगोत्री से शुरू होने वाला केदारताल ट्रैक एक कठिन श्रेणी का ट्रैक माना जाता है, क्योंकि इस ट्रैक को पूरा करने के दौरान कई बार 45 डिग्री तक खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है और इसके अलावा इस जगह पर भूस्खलन की संभावना भी हर समय भी बनी रहती है। इस वजह से इस ट्रैक को काफी कठिन माना जाता है। (Kedartal History in Hindi)
गंगोत्री से केदारताल ट्रैक पूरा करने में 4 से 5 दिन का समय लग सकता है। इस दौरान आप गंगोत्री से भोजखरक और केदारखरक होते केदारताल पहुंच सकते है। केदारताल ट्रैक कठिन जरूरी है, मगर यहां आपका सफर काफी रोमांचकारी होगा, कभी हरे भरे जंगल तो कभी पहाड़ की ऊंची ऊंची चोटियां आपका हरपल मनोरंजन करती रहेगी। जो की आपकी यात्रा को और भी रोमांचक और यादगार बना देगी।
केदारताल हिमालय के उन गिने-चुने ट्रैक में से एक है जहां से आपको हिमालय के सबसे विशाल पर्वत एक साथ दिखाई देते है जैसे – मांडा पर्वत, माउंट गंगोत्री, माउंट थलयसागर, माउंट जोगिन और माउंट भृगुपंथ। मगर ये जरूरी है कि जब भी आप केदारताल ट्रैक करें आपके साथ अनुभव गाइड होने चाहिए, आपको भी पहाड़ों की चढ़ाई चढ़ने में परेशानी ना होती हो, वरना इस जगह पर आपको परेशानी हो सकती है।
केदारताल उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध ट्रैक होने के साथ-साथ ही हिन्दू धर्म के लोगों के लिए धार्मिक मान्यता भी रखता है। इसे भगवान शिव की झील के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं इस झील का जल पिया था और इसी वजह से हिन्दू धर्म में केदारताल का धार्मिक महत्व भी बढ़ जाता है। केदारताल से जुडी हुई पौराणिक कथा देवता और दानवों के द्वारा अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय से जुडी हुई है। ऐसा माना जाता है की जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तब उस समय समुद्र मंथन से निकलने वालों 14 रत्नो में एक हलाहल विष (कालकूट विष ) भी सम्मिलित था। पौराणिक कथा के अनुसार हलाहल विष में इतनी ज्यादा गर्मी थी की समुद्र मंथन के समय उपस्थित सभी देवता और दानव जलने लग गए थे इसके अलावा यह भी माना जाता है की इस विष में पुरे ब्रम्हांड को समाप्त करने की क्षमता थी।
हलाहल विष के प्रभाव से बचने के लिए देवताओं और दानवों ने भगवान शिव से इस पीने की प्रार्थना की। देवताओं और दानवों की प्रार्थना को स्वीकार करने के बाद जब भगवान शिव ने हलाहल विष पिया तो इस वजह से उनके कंठ में बहुत तेज जलन होने लगी। ऐसा माना जाता है की हलाहल विष से होने वाली जलन को शांत करने के लिए भगवान शिव ने इसी ताल का पानी पिया था। इसलिए केदारताल की मान्यता धार्मिक लिहाज से भी काफी अहम है।