Gairsen Vidhan Sabha: 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य यूपी से अलग होकर नए पहाड़ी राज्य के रूप में अस्तिव में आया था। उत्तराखंड का नाम पहले उत्तरांचल था, मगर बाद में राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। इसके पीछ राज्य आंदोलनकारियों की वो मूल भावना जुड़ी है जिसके लिए उन्होंने अलग-अलग राज्य के लिए आंदोलन किया और कितने ही आंदोलनकारियों की शहादत हुई। ऐसे ही आंदोलनकारियों की शहादत को याद करते हुए राज्य का नाम उत्तराखंड किया गया था। मगर राज्य आंदोलकारियों को सबसे बड़ी ख्वाहिश अभी भी अधूरी है, वो ख्वाहिश है गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाना। (mountains journey)
त्रिवेंद्र के समय गैरसैंण को ग्रीष्कालीन राजधानी बनाया गया
त्रिवेंद्र रावत ने सीएम रहते हुए गैरसैंण को ग्रीष्कालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी। दिसंबर 2020 में त्रिवेंद्र रावत (trivender rawat) ने अचानक से गैरसैंण को समर कैपिटल बनाने की घोषणा की थी। हैरानी इस बात पर हुई थी कि सरकार इतनी बड़ी घोषणा करने जा रही थी मगर विपक्ष को और अन्य आंदोलनकारी संगठनों तक को इसकी भनक तक नहीं थी। इसे लेकर कैबिनेट में चर्चा तो हुई थी, लेकिन मंत्रियों को साफ हिदायत दे दी गई थी कि किसी को इसकी भनक नहीं लगने दी जाए। (mountains journey)
मगर बड़ा सवाल ये है कि है कि सिर्फ गैरसैंण (gairsen) को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना देने भर से ही आवाम की मूलभूत समस्याएं दूर नहीं हो जाएंगी, और ना ही ये माना जा सकता है कि पहाड़ विकास हो जाएगा। गैरसैंण में अवस्थापनाएं सुविधाएं जुटाने में सरकार को अभी काफी पापड़ बेलने पड़ेंगे। (mountains journey)
मगर विपक्ष यानी की कांग्रेस (uttarakhand congress) ये सवाल पूछ रही है कि आखिरकार उत्तराखंड की स्थाई राजधानी कौन सी है। क्या इतने छोटे प्रदेश में दो दो राजधानी होंगी। साथ ही कांग्रेस का ये भी कहना है कि अगर भाजपा सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्कालीन राजधानी बनाया है तो सरकार और सरकार के मंत्रियों को वहां पर बैठना भी तो चाहिए, साल में कुछ दिन ही सही मगर गैरसैंण से सरकार संचालित होनी चाहिए। कांग्रेस कहती आ रही है कि अगर वो सत्ता में आई तो गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाएगी। (mountains journey)
कांग्रेस सराकार के शासन में विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में कई अहम भवनों का शिलान्यास किया था। जबकि हरीश रावत के सीएम रहते हुए गैरसैंण में विधानभवन बनाने का काम शुरू हुआ। मगर गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने का ऐलान त्रिवेंद्र सरकार में हुआ।
गैरसैंण ऐसा मुद्दा है जिसका राजनीतिक दल अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं। सच बात ये है कि गैरसैंण में मूलभूत सुविधाएं जुटाना बहुत खर्चीला है, उत्तराखंड जैसा राज्य जिसके पास आय के सीमित संसाधन है उसके लिए इतना ज्यादा इंवेस्टमेंट करना आसान नहीं है। सवाल ये है कि जब ये सब काम देहरादून से आसानी से हो सकता है तो फिर कोई भी सरकार आखिरकार इतना इंवेस्टमेंट क्यों करेगी। ये बात भाजपा हो या फिर कांग्रेस दोनों ही अच्छी तरह से समझते हैं, मगर जब भी कोई दल विपक्ष में होता है तो वो गैरसैंण के मुद्दे को हवा देकर सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश करता है। (mountains journey)