वैसे तो चारधाम यात्रा का समापन हो चुका है। उत्तराखंड के चारधाम (Char Dham in Winter) धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो चुके हैं। ऐसे में ज्यादातर श्रद्धालु यही सोचते हैं कि अब उन्हें चारधाम के दर्शन करने का मौका 6 महीने बाद यानी चारधाम यात्रा शुरू होने पर ही मिलेगा। मगर हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप सर्दी के मौसम में भी चारधाम (Char Dham in Winter) के दर्शन कर सकते हैं। जी हां सर्दी के मौसम में उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शीतकालीन यात्रा (Char Dham in Winter) के नाम से संचालित होती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि आप शीतकाल यानी सर्दी के मौसम में भी चारधाम के दर्शन कैसे कर सकते हैं:
चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्री गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के दर्शन करते हैं। हर साल अप्रैल महीने में चारधाम यात्रा (Char Dham in Winter) की शुरुआत होती है। मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही 6 महीने तक चारधाम यात्रा संचालित होती है। ये परंपरा सदियों से इसी तरह से चली आ रही है। चारधाम में गंगोत्री धाम में मां गंगा की पूजा होती है, यमुनोत्री धाम में मां यमुना की पूजा होती है जबकि केदारनाथ धाम में भगवान शंकर और बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना होती है। परंपरा के मुताबिक सभी देवों की भोग मूर्तियां 6 महीने तक चारधाम (Char Dham in Winter) के रूप में पूजे जाने वाले मंदिरों जैसे- यमुनोत्री मंदिर, गंगोत्री मंदिर,केदारनाथ मंदिर और बदरीनाथ मंदिर में रहती है। सर्दी शुरू होने से पहले ही इन मंदिरों के कपाट यानी गेट बंद कर दिए जाते हैं। जिसके बाद मंदिरों से भोग मूर्तियों को शीतकालीन प्रवास स्थल पर लाया जाता है। जिसके बाद सर्दी के मौसम में 6 महीने तक यहीं पर पूजा-अर्चना का काम संपन्न कराया जाता है। जबकि चारधाम मंदिरों को बंद कर दिया जाता है। वहां 6 महीने तक कोई पूजा नहीं होती है।
शीतकाल में कहां पर होती है मां गंगा या गंगोत्री की पूजा:
गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद मां गंगा की उत्सव डोली या भोग मूर्ति को शीतकालीन पूजा स्थल मुखीमठ जिसे मुखबा (Mukhba) भी कहा जाता है वहां पर लाया जाता है। सर्दी के मौसम में 6 महीने तक मुखबा में ही मां गंगा की पूजा होती है। श्रद्धालु अगर चाहे तो सर्दी के मौसम में मुखबा आकर मां गंगा की पूजा कर सकते हैं और दर्शन कर सकते हैं। मुखबा उत्तरकाशी जिले में ही स्थित है।
मां गंगा के शीतकालीन प्रवास मुखबा कैसे पहुंचे
मां यमुना के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा (Mukhba) दरअसल चारधाम के पुरोहितों का एक गांव है। इस गांव में वही लोग रहते हैं जो गंगोत्री धाम में पूजा-अर्चना का काम करते हैं। अगर आप शीतकालीन यात्रा के दौरान मुखबा (Mukhba) आने की सोच रहे हैं तो आपको यहां का सुंदरता को भी निहारने का मौका मिलेगा। साथ ही आप मां गंगा के दर्शन कर पाएंगे। मुखबा में आपको परंपरागत शिल्प से तैयार लकड़ी के मकान और ठंडी आबोहवा का लुत्फ उठाना का भी मौका मिलेगा। मुखबा (Mukhba) गांव में देवी गंगा के दो महत्वपूर्ण मंदिर हैं। एक कंक्रीट और पत्थर से बना है और पुराना मंदिर देवदार और पीतल से बना है। मुखबा जाने के लिए फिलहाल पूरी पक्की सड़क नहीं बन पाई है, अगर आप मुखबा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दें मुखवा गांव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 78 की दूरी पर स्थित है। यह गांव सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है।
तो चले आईए मुखबा।
गंगोत्री के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा की क्या है मान्यता
मुखबा को लेकर मान्यता है कि वानप्रस्थ के दौरान विचरण करते हुए पांडव मुखबा पहुंचे थे और यहां पर उनका प्रवास रहा था। इसके साथ ही एक और मान्यता ये है कि मार्कंडेय ऋषि ने तप कर यही अमरत्व का वरदान हासिल किया था। मुखबा में सर्दी के मौसम में बर्फबारी होती है, अगर आप यहां आते हैं तो आप बर्फबारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं।
शीतकाल में कहां पर होती है मां यमुना या यमुनोत्री की पूजा:
ग्रीष्मकाल या गर्मी के मौसम में चारधाम यात्रा संपन्न होने के बाद यमुनोत्री धाम के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं। जिसके बाद मां यमुनोत्री की उत्सव डोली या भोग मूर्ति डोली को खरसाली (Kharsali) या खुशीमठ लाया जाता है। सर्दी के मौसम में 6 महीने तक मां यमुना की पूजा खरसाली या खुशीमठ में ही होती है। अगर आप सर्दी के मौसम में चारधाम पर आने की सोच रहे हैं तो आप खरसाली या खुशीमठ में आकर मां यमुना के दर्शन कर सकते हैं।
मां यमुना के शीतकालीन प्रवास खरसाली या खुशीमठ कैसे पहुंचे
खरसाली (Kharsali) उत्तरकाशी जिले में स्थित है। खरसाली की यमुनोत्री धाम से दूरी करीब 8 किमी है। मुखबा की ही तरह से खरसाली (Kharsali) भी बेहद ही सुंदर जगह है। यहां पर आप पहाड़ी नक्काशी से बने घरों की सुंदरता को निहार सकते हैं। खरसाली तक सड़क से पहुंचा जा सकता है। इसलिए आप यहां आसानी से अपने वाहन या किराए के वाहन से आ सकते हैं।
खरसाली में मां यमुना के मंदिर के अलावा क्या चीज देखने की हैं
मां यमुना के शीतकालीन पड़ाव खरसाली (Kharsali) गांव में शनि महाराज का प्राचीन मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। लकड़ी एवं पत्थर से बना पांच मंजिला मंदिर क्षेत्र की अनूठी वास्तुकला का नमूना भी है। शनि देव मां यमुना के भाई हैं। अगर आप खरसाली (Kharsali) आते हैं तो शनि महाराज के मंदिर भी जरूर आएं। खरसाली (Kharsali) में सर्दी के मौसम में बर्फबारी होती है, अगर आप यहां आते हैं तो आप बर्फबारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं।
शीतकाल में कहां पर होती है बाबा केदार या केदारनाथ की पूजा:
सर्दी के मौसम या शीतकाल में 6 महीने के लिए केदारनाथ धाम के कपाट भी बंद हो जाते हैं। केदारनाथ धाम (Kedarnath) रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। ये भगवान शंकर का बेहद ही प्राचीन मंदिर है, ये 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। चारधाम यात्रा संपन्न होने के बाद केदार नाथ (Kedarnath) की भोग मूर्ति या उत्सव डोली को ऊखीमठ लाया जाता है। जहां पर केदारनाथ (Kedarnath) के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शंकर की पूजा होती है। अगर आप सर्दी के मौसम में भी चारधाम यात्रा कर रहे हैं तो आप ऊखीमठ आकर भगवान शंकर की आराधना कर सकते हैं। ऊखीमठ (Ukhimath) रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
ऊखीमठ में देखने लायक जगह कौन कौन से हैं
ऊखीमठ (Ukhimath) बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है। यहां से हिमालय के सुंदर पहाड़ियां नजर आती हैं।
ऊखीमठ की धार्मिक मान्यता क्या है
कहा जाता है कि वनसुर की बेटी ऊषा और भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध का विवाह इसी स्थान पर हुआ था। ऊषा के नाम से इस स्थान को ऊषामठ भी कहा जाता है। सर्दी के मौसम में यहां भी काफी बर्फबारी होती है,, अगर आप सर्दी के मौसम में ऊखीमठ (Ukhimath) आते है तो आप यहां पर बर्फबारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं।
शीतकाल में कहां पर होती है बद्रीनाथ या बदरीनाथ की पूजा
कपाट बंद होने के बाद बदीरनाथ धाम बदरी (Badrinath) में भी 6 महीने तक श्रद्धालु दर्शन पूजन नहीं कर सकते हैं। सर्दी के मौसम जिसे शीतकाल भी कहा जाता है। इस दौरान बदरीनाथ के आराध्य देव विष्णु भगवान (Lord Vishu) की पूजा पांडुकेश्वर मंदिर में होती है। बदरीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है जबकि पांडुकेश्वर मंदिर भी चमोली जिले में ही स्थित है। कपाट बंद होने के बाद भगवान बदरी (Badrinath) बद्रीनाथ की उत्सव-मूर्ति को पाडुकेश्वर स्थित योगध्यान बद्री मंदिर में लाया जाता है। ये भगवान बद्री बदरी (Badrinath) का शीतकालीन प्रवास स्थल है। यहीं पर सर्दी के मौसम शीतकालन में 6 महीने तक बद्रीनाथ या भगवान विष्णु की पूजा होती है। यहां दक्षिणी भारत के पूजारी मुख्य पुजारी के रूप में काम करते हैं। ये परंपरा भी सदियों से चली आ रही है।
बद्रीनाथ के शीतकालीन प्रवास पांडुकेश्वर कैसे पहुंचे
पांडुकेश्वर (Pandhukeshwar) चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है। यहां तक आप सड़क मार्ग से होकर बड़ी आसानी से आ सकते हैं। यहां पर भी सर्दी के मौसम में काफी बर्फबारी होती है। इसलिए आप यहां आने पर बर्फबारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं।